शहादत

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कहानीः शहादत बस की गति मंद पड़ चुकी थी। वह ज्यों—ज्यो उस मुकाम को छू रही थी, जिससे ठीक सामने से मेरे गॉव का कच्चा रास्ता शुरू होता है। मन पर छायी विरक्ति की धुन्ध गहराने लगी थी।.... बस धूल उड़ाती आगे बढ़ गयी थी। अब स्टाप पर मैं था तो अकेला खड़ा, पर एक मौन विलाप अर्न्तमन के सन्नाटे को बीधता कब से मेरा पीछा कर रहा था, जिसे सुनने से मैं चाह कर भी बच नही सकता। आखिर मेरे पड़ोस में ही घटित हुआ है सब—कुछ.... लोग तंत्र में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को थर्रा देने वाला