Muavja

(11)
  • 13k
  • 3
  • 2k

कहानीः— मुआवजा उसकी जिन्दगी भले गांव के लिए कभी महत्वपूर्ण न रही हो, पर आज उसकी मौत गांव के समक्ष बेहद जरूरी मुद्‌दा बनकर खडी हो गयी थी। सीना फुलाये। उससे पार पाने की तरकीबें निकाली जा रही थी। हर एक के अपने—अपने स्वार्थ थे। उन तमाम जोड़—घटाने की बाढ़़ में एकदम से अलग—अलग पड़ गयी थी—एक मां की कातर घुटी—घुटी चीखे और एक बृद्ध बाप के आंखो से रह—रह कर झरते बेशुमार आंसू। पिछले करीब दो बरसों से वह एक पागल का जीवन जी रहा था। कभी चीख—चीख कर ष्भारत माता की जयष् ष्इंकलाब जिन्दाबादष् के नारे लगाता दिख