प्रतिसंसार धीरेन्द्र अस्थाना यह दोपहर के ठीक दो बजे का लपलपाता हुआ वक्त था। पूरी गली में बेतरह सन्नाटा था और वह दूर तक खाली पड़ी थी। घर के सामने पहुंच कर उसने बंद दरवाजे की कुंडी को खड़खड़ा दिया और आहट सूंघने लगा, लेकिन भीतर की खामोशी पूर्ववत रही। वह देर तक खड़ा रहा और खुद पर शर्मिंदा होता रहा। इस तरह बिना बताये वह अचानक आया है, इस बात को मां किस तरह लेगी? पूरे दो साल वह इस घर से बाहर बने रहा है और इस तरह बाहर रहा है जैसे इस घर के साथ उसका कोई