Patan bodh

  • 5.7k
  • 966

कहानी पतन बोध धीरेन्द्र अस्थाना छिपकली एकदम निष्प्राण—सी थी। पर उसकी आंखें एकदम चौकन्नी थीं और पूरा शरीर एक सतर्क तनाव में ऐंठा—ऐंठा सा था, मानो इसी मुद्रा में अचानक उसकी हृदय—गति रुक गयी हो। फिर वह बिजली की—सी गति से झपटी और दूसरे ही क्षण पतंगा उसके मुंह के भीतर था। यह है जीवन? वह हंसा और गंभीर हो गया। तभी ट्‌यूब—लाइट की ओर उठी उसकी नजर फिसली और वह सामने देखने लगा, जहां दरवाजे पर पड़े परदे के पीछे अभी—अभी कोई छुपा था। कौन? वह बिस्तर पर पड़े—पड़े उठंगा हो गया। उधर से कोई आवाज न आने पर