बख्शीश

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बख्शीश जाड़े की साँय—साँय करती रात । श्मशान—सी सुनसान सड़कें । पूरे शहर में जैसे कफ्रर्यू लगा हुआ हो और दहशतजदा नर—नारी बाल—बच्चों के साथ अपने—अपने घरों में जा छिपे हों । पुलिस—सी निर्मम शीतलहर चौकसी के बहाने मासूमों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ कर रही थी । अखबारों में रोज ही शीतलहर की चपेट में आकर दम तोड़ने वालों की संख्या में बेतहाशा वृि( की खबरें छप रही थीं । इस बरस की ठंडक गरीबों को जड़ से मिटाने में सरकार की कुछ ज्यादा ही सहायिका सि( हो रही थी । मगर कुलकर्णी साहब के बंगले में किसी को