कहानी गुफाएं धीरेन्द्र अस्थाना चीजें या तो अपना अर्थ खो बैठी थीं या अपने मूल में ही निरर्थक हो गयी थीं। जीप में, ड्राइवर की बगलवाली सीट पर बैठा वह, अपने जीवन में पसर गयी जड़ता की टोह लेने के प्रयत्न में थका जा रहा था और ग्रहणशीलता से लगभग खाली हो चुकी उसकी आंखों के सामने से झरने, पहाड़, वादियां, सीढ़ियों वाले खेत और नेपाली युवतियों के झुंड इस तरह गुजर रहे थे मानो बायस्कोप के जमाने के मुर्दा दृश्यों की ऊब थिर हो गयी हो। जीप नेपाल के एक ऐसे पहाड़ी कस्बे की तरफ बढ़ रही थी, जिसके