कथाकार

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कथाकार माघ का सर्द महीना । ठंड और ओस में निर्वसन नहाती भोर की बेला । बपर्फीली हवाओं के साथ उफध्म मचाती हुई जानलेवा सर्दी । सभी घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ पूरी तरह बन्द थीं । सुविध—सम्पन्न लोग बेशकीमती रजाई—कम्बल ओढ़े हुए जाड़े की रात का भरपूर आनन्द ले रहे थे । पूरा शहर जैसे अलसाया हुआ था । रोटी की तलाश में अखबारों के हॉकर समाचार—पत्राों के माध्यम से मानो सोये हुए लोगों को जगा रहे थे । यहाँ शहरी लोग मुर्गे की बाँग सुनकर नहीं, बल्कि इन हॉकरों की आवाज अथवा पदचाप सुनकर ही तो जगते हैं ।