पगला

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पगला ‘‘....वही आपका साथी पगला !'' गिरिजा खबर सुनाते हुए चाय का प्याला थमाकर हाथ मटकाती चली गयी । प्याला उठाया तो न जाने क्यों चाय पीने की इच्छा जाती रही । पुनः मेज पर रख दिया । पत्नी पर ही अच्छा—खासा गुस्सा उतर आया, मगर उसे भी पी जाना पड़ा । अचानक बेचैन नजरें दीवार के कोने से जा टिकीं । ‘किट—किट' करती हुई मकड़ी जाल बुनने में मशगूल थी । ‘‘पगला ।'' न चाहते हुए भी उसका चेचक के दानों से भरा झुर्रीदार चेहरा आँखों के आगे नाचने लगा । ‘‘बाबू, आप एम.एससी. हैं ?'' पहली मुलाकात में