आत्मग्लानि

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मित्रता जीवन का वो अमूल्य रिश्ता है जो इंसान बनता भी है और निभाता भी है। मगर जीवन की भाग दौड़ में और निजता में अति लिप्त होकर हम इस रिश्ते को भूल जाते है। अंजाने में एक दोस्त की अपने दोस्त को कही गयी पंक्तिया जीवन भर उसे आत्मग्लानि का बोध कराती है।