रहस्य

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आज छः माह से ऊपर हो गए हैं पर वह अब तक इस पुस्तक के बीस पृष्ठ ही पढ़ पाया है। जब भी इसे पढ़ने की कोशिश की है, एक-दो पृष्ठ पढ़ते ही उसे मन-मस्तिष्क और शरीर के रसायन में उथल-पुथल होने लगती है। आश्चर्यजनक यह है कि पुस्तक ग्रीष्मकाल में तपती थी तो अब इस शीतकाल में उसे पढ़ते हुए हिमानी आभास होता है जबकि उसे पास हर मौसम से लड़ने के अत्याधुनिक हथियार हैं। दिसम्बर की ठंडी रात को इसे थामता है तो यों लगता है कि केलांग की खुली हवा में बर्फ की सिल्ली थाम रखी हो। पिछले हफ्ते की ही बात है जब सुनील मोदी ने दराज से निकाल कर इसे मेज परा टिकाए उंगलियों से मकड़ा था और इसके अठारहवे पृष्ठ पर था कि उसकी सारी देह ठंडी पड़ गई। ... इसी पुस्तक से। आगे पढ़िए रतन चंद रत्नेश की इस कहानी में।