कहानी उस धूसर सन्नाटे में धीरेन्द्र अस्थाना फोन करने वाले ने जब आर्द्र स्वर में सूचना दी कि ब्रजेंद्र बहादुर सिंह थोड़ी देर पहले गुजर गए तो मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। उनका मरना तो उसी रात तय हो गया था, जब आसमान पर मटमैले बादल छाए हुए थे और सड़कों पर धूल भरी आंधी मचल रही थी। अखबारों में मौसम की भविष्यवाणी सुबह ही की जा चुकी थी। अफवाह थी कि लोकल ट्रेनें बन्द होने वाली हैं। गोराई की खाड़ी के आसपास मूसलाधार बारिश के भी समाचार थे। कोलाबा हालांकि अभी शांत था लेकिन आजाद मैदान धूल के बवंडरों के