Log Haashie Par

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कहानी लोग/हाशिए पर धीरेन्द्र अस्थाना ‘प्रेस तो एक प्रतीक है‘, बन्धु ने कहा था, ‘लोग समान्तर तकलीफों से गुजर रहे हैं और मैं या तुम भी उन्हीं की एक इकाई हैं। देश के अधिकांश लोग कगार पर खड़े हैं और नीचे अन्तहीन खाई है, सुरक्षित कोई नहीं है।‘ श्रीवास्तव सोचता है। सामने की दीवार पर राम, कृष्ण और भगत सिंह के कैलेण्डर लटक रहे थे और ठीक उनके बगल में एक नंगी औरत का फोटो चिपका हुआ था। ‘यह अफसरों के आने की जगह है, क्लर्कों की जगह बार है।‘ एक सूटेड—बूटेड आदमी अपने साथ खड़े क्लर्कनुमा व्यक्ति को समझा