सबका उजाला

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' हबीब चिक वाला ' सामने बोर्ड देख कर अनीस ने रिक्शा रुकवा लिया.उस कस्बे में सुबह बस अंगडाई ले ही रही थी.सर्दी ज़बरदस्त तो नहीं थी, लेकिन उसकी हाजिरी बखूबी साफ़ थी. धूप फैलनी शुरू हो गई थी. हबीब चिक वाले के घर के सामने कोई झाड़ू लगा रहा था जिस से धूल का गुबार एक धुएँ की तरह उठ गिर रहा था. पेड़ की टहनियों से छन कर आती हुई तिरछी धूप ने उस गुबार को एक पेंटिंग सा सलीका दे दिया था. फिर भी उसकी परदेदारी में यह साफ़ नहीं था कि झाड़ू कौन लगा रहा था.