शोक वंचिता

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उस समय रात के डेढ़ बज रहे थे... कमरे की लाईट अचानक जली और रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की से कूद कर नीचे आँगन में आ गिरा. लाईट दमयंती नें जलाई थी. वह बिस्तर से उठी और खिड़की के पास आ कर बैठ गयी. उसके बाल खुले थे, चेहरा पथराया हुआ था लेकिन आँखें सूखी थीं. दमयंती नें खिड़की के बाहर अपनी निगाह टिका दी. चारों तरफ घुप्प अँधेरा था, लेकिन दमयंती को भला देखना ही क्या था अँधेरे के सिवाय..?