पाँच बरस की नन्ही सी नीना। उसे गोपीरामपुरा कस्बे के कमलाकुंज मुहल्ले में अपने मम्मी-पापा के साथ आए अभी कुल जमा दो महीने ही तो हुए थे। इतने में आ गई होली। बस, नन्ही सी नीना तो मुश्किल में पड़ गई। नीना को अगर किसी चीज से डर लगता था तो होली के रंगों से। ओह, जाने कैसे-कैसे रंग चेहरे पर पोतकर बिलकुल भूत बना देते हैं लोग होली वाले दिन। शीशे में अपनी शक्ल देखो, तो खुद डर जाओ। यहाँ तक कि मम्मी-पापा की शक्लें भी होली वाले दिन कुछ ऐसी अजीबोगरीब हो जाती हैं कि कुछ पूछो मत।... ना बाबा, ना! हमें नहीं खेलनी होली और इस गोपीरामपुरा के कमलाकुंज मुहल्ले में तो बिलकुल नहीं खेलनी।