शताब्दी

  • 3.3k
  • 850

वह युवक, जो अपने बूढे माता पिता को लेकर शताब्दी एक्सप्रेस के चेयर कार कोच में तीर्थयात्रा के लिए अभी अभी बैठा है, श्रवण कुमार उसका असली नाम नहीं है. उसके पिता के भी रिटायर होने में अभी करीब साल भर बाकी है. उसकी मां का हौसला भी अपनी बहू और पोते पोतियों को लेकर बुलन्द है. इस तरह उसके पिता और मां, दोनों में से कोई भी खुद को बूढा मान लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है. इस दोनों की आँखें भी ठीक ही ठाक है, यह शताब्दी एक्सप्रेस भी, कुछ भी हो, कम से कम बहंगी तो नहीं है, फिर भी कथाकार के नाते इतनी छूट तो मैं आपसे लूंगा ही, कि मैं उस युवक को श्रवण कुमार कहता चलूँ.