साहित्यसाधना में अंतिम आहुति

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अपने पहले उपन्यास के प्रकाशित होने के पहले ही से प्रायवेट सेक्टर की नौकरी से उनका मन उचट गया था. शिकायत करते रहते थे कि सरस्वती के पुजारियों को पेट की अग्नि शांत करने के लिए अपनी साहित्यिक प्रतिभा का गला घोंटना पड़ता है. शादी के पहले ही वर्ष में पत्नी ने उनकी सरस्वतीसाधना में अपनी अरुचि की घोषणा कर दी थी. दूसरा वर्ष पूरा हो, इसके पहले ही वह उन्हें पूरी तरह से साहित्यसेवा के लिए मुक्त करके मायके जाकर बैठ गयी थी.