नींद

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शहर की सड़क से मीलों दूर, खेत खेत और पगडण्डी पगडण्डी भीतर पहुंचते उस ठेठ गांव में अगर कोई जरा सी भी ढंग की जगह कही जा सकती थी तो वह थी पोस्ट मास्टर साहब की बैठक. उस गांव में पोस्ट मास्टर डाक बाबू कहलाते थे लेकिन पता नहीं किसा स्नेह मिल मुझे जो मैं उन्हें दद्दा कहनें लगा. मैं उस गांव अपनी रिसर्च के सिलसिले में आया था. मेरा परिवार शहर में था और इस नाते मैं हफ्ते के दिन गांव में काट कर शनिवार की शाम जिन्दगी का एक टुकड जुटानें घर आ जाता था.