सुबह होने वाली थी पर पूरब के दरवाज़े पर अभी तक सूरज ने ठीक से दस्तक नहीं दी थी. रात का अन्धेरा धीरे धीरे कम हो रहा था जैसे सत्ता के सिंहासन पर आरूढ़ सरकार धीरे धीरे जनता का विश्वास खोती जा रही हो. सड़कों पर बिजली के खम्भों के नीचे रोशनी के गोल घेरे फीके पड़ने लगे थे. हवा में गुलाबी ठंढक थी पर मुंहअँधेरे सैर के लिए निकलने वालों के लिए अभी गरम कपडे पहनना आवश्यक नहीं था. इसी लिए मुझे अपने पड़ोसी रवि जी को शाल लपेटकर सुबह की सैर के लिए निकलते देख कर थोडा आश्चर्य हुआ था.