तिलस्म टूट गया है

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सुबह अखबार आते थे तो उनमें रंग बिरंगे, छोटे बड़े पैम्फलेट्स निकलते और बच्चे उन्हें लूटने के लिये झपट पड़ते. “इन्हें काट कर हम रुपये बनाएंगे और खूब खेलेंगे.” खुशी मानो उनके भीतर से फूटती सी पड़ती. अखबारों को तो रोज़ रोज़ आना ही था और रंग बिरंगे पैम्फलेट्स के बगैर अखबार आते भी तो कैसे ? सो, सिलसिला चलता रहा. बच्चे लूट कर किलकते, खुश होते और बड़े होते रहे. समय बीतता गया. अब उनके यूं किलकने खेलने पर अंकुश लगने लगा, “चलो, पढाई करो... इन कागजों के नकली रुपयों से खुश होने का क्या फायदा ? पढ़ो, बड़े हो और फिर सचमुच के रुपये कमाओ. फिर देखो असली खुशी.”