Ek Bund Sahsa Uchali

  • 5.2k
  • 1
  • 1.2k

आँख खुलते ही उस औरत ने बिस्तर छोड़ा और उठ कर अपने कमरे की खिडकी के पास आ कर बैठ गई. बाहर सुबह का होना अभी बस शुरू ही हुआ था. धूप फैलने की दस्तक अभी दूर थी, बस परिंदों ने पेड़ों पर अपनी गुंजन भरी कवायद शुरू कर दी थी. उस औरत का कमरा मकान की दूसरी मंजिल पर था.कमरे के दरवाज़े के सामने दालान था और फिर एक सहन, जिसके एक कोने से सीढियां नीचे उतरती थीं. कमरे की खिड़की मकान के पिछवाड़े एक मैदान की तरफ खुलती थी जो कहलाता तो पार्क था लेकिन था नहीं, फिर भी वहां पेड़ों की वज़ह से हरियाली थी..