Tulsi ke Bahane

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दरवाजा मैंने ही खोला था, शायद दोपहर के कोई एक या डेढ़ बजा होगा। हमारे पेइंग गेस्ट हॉस्टल के इस फ्लैट नंबर 101 में अमूमन इस वक़्त घंटी नहीं बजा करती, क्योंकि हमारा फ्लैट दोपहर के वक़्त बंद रहा करता है। आज शाम प्रैस क्लब के एक कार्यक्रम की तैयारी के कारण मैं घर पर थी। कौन होगा इस वक़्त, मस्तिक्ष की एक कोशिका या यह प्रश्न लाज़िम था। लैपटाप पर सेव का बटन दबा कर मैं दरवाजे की ओर लपकी, सामने नवविवाहिता सा गहरा पूता हुआ चटक मेकअप और चेहरे पर समुंदरी bechainbechao बेचैन हलचलों के साथ एक दुबली- पतली नाटे कद की युवती हाथ बांध कर खड़ी हुयी थी।