रघुनाथ प् प् प्रसाद त् त् त्रिवेदी - या रुग्नात् पर्शाद तिर्वेदी (प्रसाद त्रिवेदी) - यह क्या क्या करें, दुविधा में जान हैं। एक ओर तो हिंदी का यह गौरवपूर्ण दावा है कि इसमें जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है और जैसा लिखा जाता है वैसा ही बोला जाता है। दूसरी ओर हिंदी के कर्णधारों का अविगत शिष्टाचार है कि जैसे धर्मोपदेशक कहते हैं कि हमारे कहने पर चलो, वैसे ही जैसे हिंदी के आचार्य लिखें वैसे लिखो, जैसे वे बोलें वैसे मत लिखो, शिष्टाचार भी कैसा हिंदी साहित्य-सम्मेलन के सभापति अपने व्याकरणकषायति कंठ से कहें पर्षोत्तमदास और हर्किसन्लाल और उनके पिट्ठू छापें ऐसी तरह कि पढ़ा जाए - पुरुषोत्तमदास अ दास अ और हरि कृष्णलाल अ ! अजी जाने भी दो, बड़े-बड़े बह गए और गधा कहे कितना पानी! कहानी कहने चले हो, या दिल के फफोले फोड़ने