पिछले कुछ दिनों से वह अपने जीवन से काफी मायूस हो चला था। साला! यह भी कोई जीवन है। सुबह उठो, बच्चे को स्कूल बस में बिठाने ले जाओ, फिर आओ, नहाओ-खाओ और दफ्तर के लिए चल दो। बस स्टैंड पर वही मारामारी, धक्कामुक्की। किसी तरह लद-फद के ऑफिस पहुंचो और वहां भी कम्प्यूटर पर खटर-पटर करते रहो। फिर शाम में मुंह लटकाए चले आओ। आते ही बच्चा तैयार कि होमवर्क कराओ या परीक्षा की तैयारी कराओ। फिर यह सब करते-कराते खाने का समय... टीवी पर न्यूज या कुछ सीरियल देखते हुए खाना, फिर सो जाना। सुबह फिर वही। छुटट्ी के दिन एक तो सुबह जल्दी उठने का जी नहीं करता।