Nani ke Tare

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वैभव और विभोर की गरमी की छुट्टियाँ हो गई थीं। पूरे दो महीने की। मई का महीना तो स्कूल में जो छुट्टियों का काम मिला था, उसे पूरा करते हुए कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। काम खत्म करते-करते अब वे काफी ऊब चुके थे। रोज मम्मी-पापा से कहते, “कहीं घुमाकर लाओ, कहीं घूमने चलो!” पिछले हर इतवार को वे कहीं न कहीं घूमने गए थे। कभी अप्पू घर, कभी नेहरू तारामंडल, कभी राजघाट और गाँधी स्मृति भवन। और पिछले ही इतवार को वे ‘फन एंड फूड’ में गए थे और पूरे दिन बहुत मजे किए थे। पानी के खेलों ने तो उनका मन मोह लिया था। पर अभी तो चार इतवार और बाकी थे।