कोकिलाशास्त्र

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न चिड़ियों की आवाज रही और न हवा की सनसनाहट। अब न फूल खिलते हैं और न ही आंधियों में पीपल की टहनियां झुककर जमीन को सलाम करती हैं। लोगों के कानों को मोर की आवाज और पपीहे की किलकारी में फर्क भी पत्ता नहीं रहा। यह भी मालूम नहीं कि वह आवाज किस जानवर की है लेकिन जब रात के करीब एक बजे गांव के पूर्व में एक पक्षी जैसी आवाज सुनती है तो पूरा गांव आवाज की दिषा में दौड़ पड़ता। पक्षी की आवाज का अंदाजा भी इसलिये लगाया जाता है क्योंकि यह आवाज इंसानों जैसी नहीं थी। गांव की सीमा पर लोगों की भीड़ लग जाती लेकिन पक्षी का अता-पता नहीं लगता। कहां गया होगा वह आवाज निकालने वाला ?