धोखा

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धोखा (कहानी) चैत का महीना । तेज धूप। दिन किसी छॉव की तलाष में हॉफता फड़फड़ाता इधर उधर भाग —दौड़ — भटक रहा है। घड़ी की सुई दो से तीन को छूने की फिराक में बच्चो की तरह बार —बार उचक रही है। सूरज है कि गुस्से से तमतमाया हुआ है। किसी सनकी राजा के सैनिकों की तरह उनसे निकलने वाली उमस पेंड़ की छॉव को भी नहीं छोड़ रही है। मानो उन्हें किसी इनामी फरार वारण्अी की तलाष हो। दुनिया चाहे इधर की उधर हो जाए मगर आज उसे किसी भी हाल मे नहीं छोड़ना है। ऐसे में हर