उदासियों का पीपल अपनी शाखाएँ बढ़ाता जा रहा था और आक्सीजन की कमी उसे तड़पाने लगी थी । जीवन ने एक बार फिर उसे लड़खड़ाते कदमों के सहारे छोड़ दिया था । पहले घर छूटा ....फिर राज्य....साथ ही छूट गयी अपनी भाषा की मिठास .....अपने फूल ... अपनी सर्द गरम रिमझिम करती हवाएँ ......और उसका .....हाँ उसका बड़बोलापन ।