जन्मभूमि

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कहानी जन्मभूमि धीरेन्द्र अस्थाना (यह रचना है, कहानी नहीं। कहानी होने के लिए जो केंद्रीय कथ्य, पठनीयता, सुसंबद्ध घटनाक्रम, सुचिंतित समाधान या दावा चाहिए वह इसमें नहीं है। ये सब ‘नहीं‘ अगर इसे ‘एंटी—स्टोरी‘ बनाते हैं तो यह ‘एंटी—स्टोरी‘ है, लेकिन अगर ‘एंटी—स्टोरी‘ कोई विधा है तो यह ‘एंटी—स्टोरी‘ भी नहीं है। इसका कोई आरम्भ नहीं है और कोई अंत भी नहीं है। लड़ते—लड़ते थककर पराजित (परास्त नहीं) होने पर इसका अंत मान लिया गया है और लड़ाई की शुरूआत को आरंभ कहा गया है। इसमें कोई सिलसिला नहीं है। कोई तुक नहीं है। ठीक उसी तरह जैसे जीवन में