वासना की कड़ियाँ

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वासना की कड़ियाँ बहादुर, भाग्यशाली क़ािसम मुलतान की लड़ाई जीतकर घमंउ के नशे से चूर चला आता था। शाम हो गयी थी, लश्कर के लोग आरामगाह की तलाश मे नज़रें दौड़ाते थे, लेिकन क़ािसम को अपने नामदार मािलक की िख़दमत में पहुंचन का शौक उड़ाये िलये आता था। उन तैयािरयों का ख़याल करके जो उसके स्वागत के िलए िदल्ली में की गयी होंगी, उसका िदल उमंगो से भरपूर हो रहा था। सड़कें बन्दनवारों और झंिडयों से सजी होंगी, चौराहों पर नौबतखाने अपना सुहाना राग अलापेंगे, ज्योंिह मैं सरे शहर के अन्दर दािखल हूँगा। शहर में शोर मच जाएगा, तोपें अगवानी के िलए जोर- शोर से अपनी आवाजें बूलंद करेंगी। हवेिलयों के झरोखों पर शहर की चांद जैसी सुन्दर िस्त्रयां ऑखें गड़ाकर मुझे देखेंगी और मुझ पर फूलों की बािरश करेंगी। पढ़िए पूरी कहानी प्रेमचंद जी की कलम से