कहानी रमेष खत्री बीच का रिष्ता वे दोनों जब उठकर चले गये तब एक बेंच ने दूसरी से पूछा, ‘क्यों री......! जरा बता तो......जो अभी यहाँ बैठे थे, वे कौन थे ?' तब दूसरी बेंच अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए बोली, ‘अरे सखी.....! क्या तू मुझे इतना मुर्ख समझती है । या क्या मैं इतनी बढ़ी हो गई हूँ कि मुझे कुछ भी दिखाई नहीं देता है और मैं आदमी को भी नहीं पहचान पाती । अरे...ये वहीं तो हैं जिनके पास जड़ें नहीं है बस तना ही तना है ।' ‘अरे नहीं री.....मेरे कहने का तात्पर्य यह