ठुमकी (एक ठुमकती हुई ज़िन्दगी का असमय अंत )

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ससुराल से एक साल बाद मायके पहुँची थी |बरामदे की चौखट पार की ही थी कि सामने से फूला चाची आती दिखीं |हमेशा की तरह थोड़ा घूँघट निकाला हुआ चेहरा, हाथ में झोली,पर होंठों पर वह मुस्कान नहीं दिखी जो हमेशा दिखती थी | पर आज कुछ अलग था।उनके नज़र उठाने पर मैंने पूछा..“कैसी हैं चाची?”पर जवाब में बस एक खामोशी आई |वो धीरे से सिर हिलाकर आगे बढ़ गईं |उनकी चाल में उस रोज़ ठहराव था, उदासी थी, जैसे कोई मन के भीतर से ढह गया हो |मैं कुछ क्षण वहीं जड़-सी खड़ी रही |फूला चाची हँसते हुए जवाब देने