कमरे में गूंजती थी अभी कुछ देर पहले तक वीणा की साज़िशी आवाज़, रुखसाना की परछाई, और वो तहख़ाना...लेकिन अब सबकुछ शांत था।सुबह का उजाला हवेली के पुराने झरोखों से भीतर फैलने लगा।दीवारें, जहाँ अभी कुछ देर पहले रुखसाना की परछाई लहरा रही थी—अब खाली थीं। वो पुराना तहखाना… मानो कभी था ही नहीं। वीणा भी उसी तरह शांत पडी थी, जैसे किसी ने उसे सदियों से छुआ ही न हो। अन्वेषा ने काँपती आवाज़ में कहा, “देखा?” “मैं कह रही थी… ये सब… ये सब सही नहीं है, अपूर्व। ये हवेली हमें निगल जाएगी। प्लीज़… हमें यहाँ से चले जाना चाहिए।”अपूर्व खामोश रहा, जैसे