"तुम ही हो मेरा जहाँ"भाग 2: वो अजनबी एहसासमंदिर की घंटियाँ गूँज रही थीं। भोर की हल्की ठंडक हवा में घुली हुई थी, और सूरज की पहली किरणें गाँव की पगडंडियों को धीरे-धीरे रोशन कर रही थीं। मंदिर के पास के पेड़ों पर बैठे पक्षी चहचहा रहे थे, मानो सुबह की पवित्रता को और भी मधुर बना रहे हों।आवनी ने सिर पर ओढ़नी संभाली और आँखें मूंदकर भगवान के सामने हाथ जोड़ दिए। उसकी पलकों के पीछे कोई अनकही प्रार्थना थी, कोई ऐसा एहसास जो शब्दों में ढल नहीं पा रहा था। उसके चेहरे पर गहरी शांति थी, जैसे वह