गांव के किनारे बसे एक छोटे से आश्रम में, गुरुदेव शांतिकरन अपने शिष्यों को ध्यान का अभ्यास सिखाया करते थे। उनके शिष्य विभिन्न प्रकार के लोग थे—कुछ साधक थे, तो कुछ ग्रामीण जो जीवन की समस्याओं से परेशान होकर समाधान की तलाश में आए थे। गुरुदेव का मानना था कि मन की असली शक्ति ध्यान में छिपी होती है, और इसके माध्यम से इंसान जीवन की हर चुनौती का सामना कर सकता है।आश्रम का सबसे प्रतिभाशाली शिष्य था अरुण, एक युवक जिसकी उम्र महज 25 साल थी। वह बचपन से ही शांत स्वभाव का था, परंतु उसका जीवन कठिनाइयों से