क्रांति अपने पिता का आखिरी फ़ैसला सुनकर निराश अवश्य हुई लेकिन उसका अटल इरादा ना बदला। वह तो हॉकी खेल कर अपने देश का सर शान से ऊंचा करके दिखाना चाहती थी। उसका मन, दिल और दिमाग़ दिन रात उसी दुनिया में खोया रहता जिसमें वह जाना चाहती थी। अब बस उसे यह तलाश थी कि वह किससे और कैसे हॉकी खेलना सीखे। क्रांति के स्कूल में हर शनिवार को खेलकूद का पीरियड होता था। आज जब वह खेलने के लिए मैदान पर गई तो उसे मुकेश सर को देखते ही ख़्याल आया कि क्यों ना वह उनसे बात करे।