मेरे पिता जी का ट्रांसफर जलालाबाद (थानाभवन) से बदायूं हो गया,बदायूं के पास एक छोटा सा गाँव था तातागंज,वहाँ मैं कुछ दिन ही रहा,मेरे पापा डॉक्टर थे,नीचे अस्पताल था ऊपर मकान जिसमें हम लोग रहते थे,मकान की ख़ाशियत ये थी की दरवाज़े तो थे पर कुंडी नहीं थी,उस गाँव में मुझे याद हैं सब्जी बेचने वाले के पास भी तमंचा होता था. उस गाँव में खोयें का काम होता था और अक्सर किसी ना किसी के यहाँ से रोज़ाना खोयाँ आ जाया करता था,मेरी मम्मी खोयें में चीनी डाल कर सबको दे देती थी अक्सर खौएँ को हम खा कर