मुक्त - भाग 10

  • 408
  • 117

मुक्त (10) -----                              बस यही से शुरू होती है, एक नई खींच, एक नया बुलंदी का सबब... युसफ बदल सकता था, पर असुलू के आड़े नहीं आने देता था... मुझे दर्द हुई, तो उसे कितनी होई होंगी... जिसको हलाल किया होगा... कयो... किसी ने सोचा ही नहीं शायद... ये जीभ भी बहुत रंग बखेरती है... कया समझते हो.. कियामत के दिन कया मुँह लेकर जाओगे.... " खुदा मेरे कारसाज, मै ये नहीं जीभी का चस्का लेना चाहता... मुझे बक्श ले। " अभी सोचते हुए अंदर उसने