" कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क्रिक को तो यही लगता था की अगर मेरी किस्मत मे नकचडी का प्रेम है तो वो मुझे मिल ही जायेगी अगर नही है तो कितनी भी कोशिस कर लू हम दूर ही हो जायेंगे। यहाँ पर नकचडी क्रिक को ही अपने सपनो का राजकुमार मानती थी। वो क्रिक को ही अपना जिवन साथी मान ने लगी थी। स्कूल मे वो मुझसे मिलने के बहुत से बहाने ढूंढती रहती थी और मे भी बहाने ढूंढता था जैसे की अगर हमारे क्लास मे कोई पार्टी सेमिनार या कुछ भी