मंजिले - भाग 14

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 ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।    चलती हुई ट्रेन की टक टक थक थक... चल सो चल  थी। कभी पटरी से ट्रेन के पहिये घिसते हुए टक टक टक करते गुज़ रहे थे.... शायद कोई छोटा सा स्टेशन होगा, छूट गया... चादर थी काली रात की जैसे मसया हो... चाद डूब गया, आज जैसे भूल ही गया, सच मे, कोई खो गया लगा जैसे कोई चाद का, बहुत कुछ, हक़ीक़त मे, खुदा किसी से न करे ऐसा, कया था... एक टीस उठी, एक वेदना  उठी, " मेरा भी बाप होता " सोचा एक छोटे युवक