मुक्त - भाग 4

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    मुक्त -----उपन्यास की दर्द की लहर मे डूबा सास भी भारे छोड़ ता जा रहा था युसफ का मार्मिक ---------                     (   4)                      युसफ आज समझा था, जिंदगी के मायने... हर कदम इम्तेहान लेता है,  सब्र  टूट गया था।आँखे भरी हुई थी... फट जाने को थी। भविष्य डगमगा रहा था। बोल नहीं हो रहा था, स्वर दबा दबा  था, बारीक़ लहरे टूट रही थी। खुदा की  कायनात मे लहजा एक ही था ... सुख और दुख।  दुख सोचने मे लम्मा