कोई न कोई ऐसा ही कारनामा करता रहता था।और अटक लड़ाई मोल लेना उसकी आदत थी।एनानी कि मोहन लाल से अच्छी दोस्ती थी।दोनों के स्वभाव में कोई साम्य नही था।फिर भी गहरे दोस्त थे।सर्विस में भी और रिटायरमेंट के बाद भी।किसी भी स्टेशन मास्टर या अपने इंचार्ज से उसकी पटती नही थी।हर एक से लड़ना।अगरकोई बात उसके विरुदह जये तो कोरट जाने में भी देर नही करता था।इसका नतीजा यह निकला कि मुझसे सीनियर होकर भी पदोन्नति में पीछे रह गया और मैं इंचार्ज बन गया।लेकिन हमारी दोस्ती कम नही हुई।ऑफिस मे भी और बाहर भी दोस्ती वैसी ही रही।आगरा