में और मेरे अहसास - 116

दिलबर दिलबर की आँखों के इशारे को ना समझे वो अनाड़ी हैं l समझकर भी ना समझी का दिखावा करे वो खिलाड़ी हैं ll   लहजा समझ में आ रहा है कुछ कुछ बात करने का l अब पलभर में बदलते हुए मौसम की रवानी बतानी हैं ll   केवल लिहाज़ रखने के लिए मुस्कराहट ही बेहतर है l फिझाओ के मिजाज के हिसाब से अब कहानी बनानी हैं ll   खुद को खुद के वास्ते आज झाड़ कर ले आए हैं l नाजुक लम्हों में हाथ पकड़कर कहीं हुई बात निभानी हैं ll   यादों के ज़ख्म की सिलाई-कटाई