मनीषा अपने कमरे में लेटी हुई थी। उसके मन में विचारों का सैलाब था। तकिए को कसकर पकड़ रखा था, उसकी आंखों में गुस्सा, आहत भावनाओं और पछतावे का अजीब सा मिश्रण था। "तुम मुझे कैसे भूल सकते हो, सहदेव?" उसने धीमे लेकिन तंज भरे लहजे में बुदबुदाया। "मैंने तुम्हें अपनी ज़िंदगी का वो हिस्सा दिया, जो केवल मेरे पति के लिए होना चाहिए था। लेकिन तुमने... तुमने मुझे बस एक खिलौने की तरह इस्तेमाल किया और फेंक दिया।"उसकी आंखों के सामने वो पल घूमने लगे, जब उसने सहदेव पर विश्वास किया था। एक समय था जब वह इस रिश्ते को लेकर