डाकखाने में

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 उन्नीस सौ बानवे के जिन दिनों कस्बापुर के एक पुराने डाकखाने में जब मैं सब पोस्ट मास्टर के पद पर नियुक्त हुआ था,तो मैं नहीं जानता था अस्सी वर्षीय मणिराम मेेरे डाकखाने पर रोज़ क्यों आते थे ? ‘स्टोरेज कनवेयर’ में क्यों झांकते थे? ‘सैगरिगेटर’ के ऊपरी बेलन पर घूम रही ‘मिक्स्ड’ डाक को बीच में रोक कर उसकी ‘फ़्लो’ क्यों बिगाड़ दिया करते थे? बाहर से आए पत्रों के ‘एड्रेस’ की ‘फ़ेसिंग’ कर रहे कर्मचारी का हाथ क्यों बंटाया करते थे? ‘शार्ट’ हो चुके पत्रों के ‘पिजनहोल’ में क्यों अपना हाथ जा डालते थे? फिर मुझे बताया गया बाइस