Nafrat e Ishq - Part 9

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सहदेव अपने कमरे में बैठा था, लेकिन उसका दिमाग उस पत्र के इर्द-गिर्द घूम रहा था। काव्या की कॉल ने थोड़ी राहत दी थी, लेकिन उसके भीतर का अशांत सागर शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। कमरे की घड़ी की टिक-टिक और बाहर बहती हवा की आवाजें माहौल को और भी तनावपूर्ण बना रही थीं।  "क्या सच में सब कुछ ठीक हो सकता है?" उसने खुद से कहा।  उसके विचारों का सिलसिला अचानक टूट गया जब उसने खिड़की पर एक परछाई देखी। वह ठिठक गया। खिड़की के कांच पर हल्की सी धुंधली परछाई हिली और फिर गायब हो गई। सहदेव