बहुत रात, काला साया, सुनसान हवेली,जानकी को डर के मारे पता नही रहा की अब वो क्या करे, जैसे ही वह दरवाजे की ओर जाने लगी तब अचानक से दरवाजा बंद हो गया। यह सब देख कर जानकी डरने लगी।वह जानती नही थी की इसके साथ क्या होने वाला था। क्या हों रहा था। रात के करीब २:३० बजे थे। यह वक्त अब विकराल रूप धारण कर रहा था। जानकी चिलाने लगी। खोलो..... खोलो..... दरवाजा खोलो..... कोई मेरी मदद करो.......लेकिन हवेली के बाहर किस तक उसकी आवाज पहुंचती। इतनी