काव्या कितना अजीब आदमी है। नाम देखे बिना कोई कैसे फोन रिसीव कर सकता है...काव्या ने थोड़ा चलना शुरू कर दिया था। वो अपनी बालकनी में बैठी हुई थी। और अपने फोन पे धीमी सी आवाज में गाने सुन रही थी और साथ में गुनगुना रहीं थी।बहती रहती नहर–नदियां सी तेरी दुनिया मेंमेरी दुनियां है तेरी चाहतों मेंमैं ढल जाती हूं तेरी आदातों में’गर तुम साथ होतेरी नजरों में हैं तेरे सपनेतेरे सपनों में है नाराजीमुझे लगता है के बातें दिल कीहोती लफ्जों की धोखेबाजीतुम साथ हो या न हो, क्या फर्क है?बेदर्द थी जिंदगी, बेदर्द हैअगर तुम सा...अचानक उसने गुनगुना