जिन दिनों मैं लखनऊ आया यहाँ की प्राण गोमती माँ लगभग सूख चुकी थीं |यहाँ के लोगों की तरह उनका भी पानी सूख चुका था और जो था उनमें गंदगी और शैवाल ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था |चित्रों में , फिल्मों में कहानियों में गोमती की सर्पीली सुंदरता बहुत देख सुन चुका था लेकिन असलियत में मैंने कुछ और पाया |घर से आकाशवाणी आते जाते निशातगंज के आगे गोमती पुल पार करना पड़ता था और हर बार गोमती माँ मुझसे मानो कुछ कहना चाह रही थी | ऑफिस पहुँचने की जल्दी में मैं रुक