आत्मा की देहरी पर

  • 849
  • 285

अध्याय 1: एक अधूरी खोज   रात का सन्नाटा चारों ओर पसरा था। हल्की-हल्की चांदनी धरती पर गिर रही थी, और सितारे आकाश में जैसे कोई रहस्य छिपा रहे थे। मीरा बालकनी में खड़ी होकर उस चांदनी में कहीं खोई हुई थी। उसका मन कहीं दूर बहकता सा लग रहा था। उसके दिल में एक बेचैनी सी थी, जो उसे बार-बार अपने अंदर झाँकने पर मजबूर कर रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर यह बेचैनी क्यों है। क्या यह प्रेम का संकेत है, या किसी अधूरी तलाश का संकेत? मीरा का दिल हर समय एक अनजाने